Sone ka Pyaala Kahani in Hindi, यह सोने का प्याला कहानी बहुत ही मनोरंजक और सीख भरी है। जिसे पढ़ने के बाद आपको बहुत अच्छा लगेगा। इस कहानी में शंखू नाम का लड़का अपने पिता को एक बोरे में भर कर सरदार और गाँव वालों के साथ सफर पर निकलता है। जिसकी भनक तक किसी को नही लगती है…
सोने का प्याला कहानी (Sone ka Pyaala Kahani in Hindi)
काफी समय पहले की बात है, डिंगोला नाम का एक सरदार था। वह कबीली जाति का था। जहाँ पर वह रहता था वहाँ की मिट्टी अब बंजर हो चुकी थी।
इसलिए एक दिन की बात है, उसने अपने कबीले के लोगों को किसी ऐसे स्थान पर ले जाने का फैसला किया, जहां कि मिट्टी काफी उपजाऊ हो। लेकिन यात्रा बहुत लम्बी और कठिन थी। इसलिए रास्ते में काफी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ सकता था।
डिंगोला ने कहा- ‘जितने भी बूढ़े लोग हैं, उन्हें यहीं इस स्थान पर छोड़ दिया जाए, वे इतनी लम्बी और कठिन यात्रा नहीं कर सकते, और हम लोगों पर बोझ बनकर रह जाएंगे।’
लोगों को इस बात का बड़ा दुःख हुआ, लेकिन उन्हें जैसा कहा गया था वैसा ही करना पड़ा। लेकिन शंखू इन सबसे अलग सोच रहा था। मैं अपने बूढ़े पिता को यहां कभी नहीं छोडूंगा। ‘इसलिए उसने अपने बूढ़े पिता को एक बोरे में बन्द कर लिया और दूसरे लोगों के साथ चल दिया।’
काफी लम्बे समय तक उनका सफर जारी रहा, चलते रहने के बाद वह एक झील के किनारे पहुंच गए। झील तीन तरफ से पहाड़ों से घिरी हुई थी। ‘यहीं पड़ाव डाल दो।’ डिंगोला ने आदेश दिया। फिर उसने अपने एक आदमी को पानी लेने के लिए भेजा।
झील का पानी बड़ा साफ था। जैसे ही वह व्यक्ति जल लेने के लिए झुका, उसे झील की पेंदी पर एक सोने का प्याला दिखाई पड़ा। उसने वापस आकर यह बात सरदार को बताई।
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मुझे हर हालत में वह प्याला चाहिए। डिंगोला ने कहा। इसलिए उस आदमी ने झील में डुबकी लगा दी। काफी देर तक सभी लोग उसका इंतजार कर रहे थे। लेकिन यह व्यक्ति दोबारा पानी से बाहर नहीं आया।
इस प्रकार एक के बाद एक आदमी झील ने पानी में डुबकी लगाते रहे। परन्तु उनमें से कोई भी व्यक्ति दोबारा लौटकर ऊपर नहीं आया। अब शंखू की बारी थी, वह जाने से पहले बताने के लिए अपने पिता के पास पहुंच गया।
‘रुक जाओ शंखू।’ उसके पिता ने कहा- ‘सुनहरा प्याला झील की पेंदी में नहीं बल्कि पहाड़ की चोटी पर है। झील में जो दिखाई देता है, वह उस प्याले का प्रतिबिम्ब है। इसलिए मेरे बेटे! मेरे लाल! झील में डुबकी न लगाकर तुम पहाड़ी पर चढ़ो।’
अपने पिता की बात को मानते हुए शंखू पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गया और वहां से सोने का प्याला उतार लाया।
प्याला देखकर डिंगोला बहुत खुश हुआ। उसने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा- ‘तुम कितने बहादुर हो जो इस प्याले को हासिल करके हम तक ले आये। लेकिन ये प्याला तुम्हें मिला कैसे?’
‘सरदार, प्याला पहाड़ के ऊपर था। झील के अन्दर नहीं।’ शंखू ने बताया- ‘इसलिए मैं झील में डुबकी न लगाकर पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया और यह प्याला मुझे मिल गया।’
डिंगोला काफी खुश हुआ। अगले रोज वे लोग आगे की यात्रा के लिए रवाना हो गए, चलते-चलते वे एक रेगिस्तान में पहुंच गए। वे काफी थक चुके थे और प्यास भी बहुत लग रही थी।
‘आज हम यहीं पड़ाव डालेंगे।’ डिंगोला ने कहा। तब उसने अपने आदमियों से पानी लाने को कहा। लेकिन किसी को कहीं भी पानी नसीब नहीं हुआ।
प्यास की व्याकुल को देखकर शंखू अपने पिता के पास पहुंचा और कहा- ‘पिताजी, हमें अब क्या करना चाहिए? हम सभी लोग प्यास से तड़प रहे हैं।’
शंखू के पिता ने कहा- ‘एक तीन साल के उम्र की गाय लो। उसे इधर-उधर घूमने के लिए आजाद छोड़ दो। जिस स्थान पर भी वह रुककर सूंघने लगे, वहीं से खोदना प्रारम्भ कर दो। उस जगह तुम्हें पानी मिल जायेगा।’ इतना सुनकर शंखू वापस आ गया।
अपने पिता के कहने के मुताबिक शंखू ने वैसा ही किया जैसे उसे कहा गया था। जब तीन साल की उस गाय ने जमीन को सूंघना आरम्भ किया तो उसने डिंगोला के आदमियां से कहा- ‘आप लोग इस स्थान की खुदाई करें। मेरे कहने के मुताबिक यहां पानी जरूर निकलना चाहिए, तुम जल्दी से काम शुरू करो।’
जैसे ही उन सैनिकों ने वहां से खोदना शुरू किया, उस स्थान पर कुछ ही देर में ठण्डे व स्वच्छ पानी की एक धार फूट निकली। यह देखकर डिंगोला की प्रसन्नता का ठिकाना ही न रहा। वह खुशी से उछल पड़ा।
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‘क्या तुम बता सकते हो शंखू कि तुम्हें यहां पानी होने का कैसे पता चला।’ उसने पूछा।
सरदार, यह तो किस्मत की बात है। मैंने तो सिर्फ अंदाजा ही लगाया था।’ शंखू ने कहा।
सभी लोगों ने जी भरकर पानी पिया, आराम किया और फिर अपने आगे के सफर के लिए सवार हो गए चलते-चलते अब कि बार वे लोग ऐसी जगह पर पहुंचे जो एक खुला हुआ स्थान था। वही जगह उन्होंने पसंद करके अपना पड़ाव डाल दिया।
रात हो गई। तारों की मद्धिम रोशनी छिटकी हुई थी, उसी रोशनी में सभी लोग बिस्तर लगाकर सो गए थे। अचानक आधी रात के समय काले-काले बादल घिर आए और तेज हवाएं चलने लगीं। देखते-ही-देखते बहुत तेज बारिश होने लगी थी।
बारिश की वजह से अलाव की आग बुझ गई। बहुत कोशिश करने के बावजूद भी वे लोग आग नहीं जला पा रहे थे। सभी लोग ठंड से कांप रहे थे। उसी वक्त किसी ने कहा- ‘अरे, उस पहाड़ी की तरफ तो देखो वह आग जल रही है।’
सभी ने चौंककर उधर देखा।
डिंगोला ने अपने आदमियों को आज्ञा देते हुए कहा- ‘उस आग को यहां लेकर आओ।’
उसके आदेश के अनुसार कुछ लोग आग लेने के ‘लिए चल पड़े। लेकिन बहुत कोशिश करने के बावजूद भी वह सभी लोग आग लाने में कामयाब नहीं हो सके। उन सभी लोगों ने बारी-बारी कोशिश करके देख ली, लेकिन कोई भी वहां से आग नहीं ला सका। जो भी कोई किसी जलती हुई मशाल को नीचे लाते बारिश उसको बुझा देती।
अब की बार शंखू की बारी थी, वह भागा हुआ अपने पिता के पास पहुंचा। उसने जाकर सारी बात अपने पिता को बता दी और कहा- ‘पिताजी, अब आप ही कोई उपाय बताओ।’
‘घबराने की कोई जरूरत नहीं है बेटे।’ उसके पिता ने तसल्ली दी- ‘एक ढक्कनदार पतीला लेकर वहां जाओ और वहां से जलते हुए अंगारे लेकर वापस आ जाओ।’ अपने पिता के कहने के मुताबिक शंखू ने वैसा ही किया जैसे उसे बताया गया था।
ऐसा करने से तुरन्त ही आग फिर से जला दी गई। लोगों ने हाथ तापने के अलावा उस पर खाना भी पकाया। सभी लोग आग जलने पर बहुत खुश हो रहे थे।
डिंगोला भी इस बात के लिए बहुत खुश था। उसने एक बार फिर शंखू को अपने पास बुलाया और कहा- ‘शंखू, हम तुमसे बहुत खुश हैं। सचमुच तुम काफी होशियार लड़के हो।’
शंखू ने तुरन्त जवाब दिया- ‘सरदार, होशियार मैं नहीं हूँ बल्कि मेरे पिताजी बड़े होशियार हैं।’
‘तुम्हारे पिताजी!’ डिंगोला ने आश्चर्य से कहा- ‘तुम्हारे पिताजी यहां कहां से आ गए?’
शंखू ने पूरी बात सरदार को बताते हुए कहा- ‘सरदार, मैं यह बात सहन नहीं कर सकता था कि मेरे पिताजी बुढ़ापे में मुझसे कहीं छूट जाएं, इसलिए मैं उन्हें अपने साथ यहां ले आया। मेरे पिताजी ने मुझे हर बार बताया कि मुझे क्या करना है।’
डिंगोला उसकी बात सुनकर कुछ देर के लिए खामोश हो गया और फिर उसके पिता को बुलवा लिया।
‘पिताजी, मुझे बड़ा अफसोस हैं।’ उसने कहा- ‘मेरी सोच एकदम गलत थी, बूढ़े आदमी बोझ नहीं होते हैं। वे तो अच्छे और बड़े अक्लमन्द होते हैं। हमें उनका प्यार और नेक सलाह की हर वक्त जरूरत होती है। आप मुझे माफ कर दें।’
फिर उसने अपने कुछ जांबाज सैनिकों को उन बूढ़े लोगों को लाने के लिए भेज दिया जिन्हें उन्होंने पीछे छोड़ दिया था और भविष्य में उन्हें भरपूर प्यार व सम्मान देने लगा।
इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
यही की हमें हमेशा अपने बड़ो की बात मानना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।
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