The kashmir files movie story in hindi, कश्मीर फाइल्स स्टोरी इन हिंदी, कश्मीरी पंडित कौन है? और कश्मीरी पंडित क्यों भागे अपना घर-बार छोड़कर?
The kashmir files movie (द कश्मीर फाइल्स),1990 के समय कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से निकाले जाने की एक सच्ची घटना पर आधारित मूवी है , जो उस दौरान कश्मीरी पंडितों के साथ हुए दुर्व्यवहार का सटीक चित्रण प्रस्तुत करती है। इस फिल्म को देखकर आप उस दर्द को महसूस कर पाएँगे जो 90 के दशक में घाटी में उन लोगों से सहा ,और जो आज भी उस दर्द को अपने सीने में लेकर जीने मजबूर हैं।
इस आर्टिकल में हमने द कश्मीर फाइल्स स्टोरी इन हिंदी जानेंगे ,तो जिन्होंने The Kashmir files movie अभी तक नहीं देखी वो इस आर्टिकल में के माध्यम से पूरी कहानी पढ़ सकता है।
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The kashmir files movie short introduction in hindi
निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों का पलायन को दिखाया है। जो कि 80 के दशक के अंत और 90 के दशक की शुरुआत में हुआ था। विवेक अग्निहोत्री ने पलायन से 700 से अधिक प्रवासियों का साक्षात्कार लेने का दावा किया और दो साल की अवधि में उनकी कहानियों को रिकॉर्ड किया इस फिल्म द कश्मीर फाइल में अभिनेता अनुपम खेर और मिथुन चक्रवर्ती 2020 में फिल्म के मुख्य अभिनेता के रूप में कलाकारों में शामिल हुए।
फिल्म का नाम | द कश्मीर फाइल्स (The kashmir files) |
डायरेक्टर | विवेक अग्निहोत्री |
लेखक | विवेक अग्निहोत्री ,सौरभ एम पांडेय |
प्रोड्यूस्ड बाई | तेज नारायण अग्रवाल , अभिषेक अग्रवाल , पल्लवी जोशी , विवेक अग्निहोत्री |
अभिनय | मिथुन चक्रवर्ती ,अनुपम खेर ,दर्शन कुमार , पल्लवी जोशी , चिन्मय मंडलेकर, प्रकाश बेलावादी ,पुनीत इस्सारी |
छायाकार | उदयसिंह मोहिते |
संपादक | शंख राजाध्यक्ष |
संगीतकार | स्कोर: रोहित शर्मा , गीत: स्वप्निल बंदोदकर |
प्रोडक्शन कंपनी | ज़ी स्टूडियोज , अभिषेक अग्रवाल आर्ट |
रिलीज़ डेट | 11 March 2022 |
फिल्म समय सीमा | 170 minutes |
भाषा व देश | हिंदी, भारत |
बजट | 15 करोड़ |
क्या आपने पुष्पा मूवी रियल स्टोरी इन हिंदी में पढ़ी हैं?
The kashmir files movie story in hindi – द कश्मीर फाइल्स स्टोरी इन हिंदी
हाल ही में रिलीज हुई द कश्मीर फाइल्स फिल्म केवल एक कहानी नही है, बल्कि इसमें कश्मीरी हिंदुओं की सच्चाई को दिखाया गया है। चलिए जानते हैं कि आखिर क्या है इस फिल्म में –
तो दोस्तों यह फिल्म 1990 से शुरु होती है और मौजूदा साल तक पहुँचती है। दिल्ली में पढ़ रहा कृष्णा (दर्शन कुमार) अपने दादाजी पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए श्रीनगर आता है। कश्मीर के अतीत से बे खबर वह अपने परिवार से जुड़ी सच्चाई की खोज में है। यहाँ श्रीनगर में उसकी मुलाकात दादाजी के 4 दोस्तों से होती है। और उनके बीच धीरे धीरे कश्मीरी पंडितों के पलायन और नर संहार की चर्चा शुरु होती है और कहानी पहुँचती है साल 1990 में।
यह कहानी शुरू होती है जब सन 1990 में जेकेएलएफ (JKLF) द्वारा सतीश टिक्कू की हत्या कर दी जाती है। दिखाया जाता है कि किस तरह कश्मीर की गलियों में आतंकी बंदूकें लेकर चारों ओर घूम रहे हैं और कश्मीरी पंडितों को ढूंढ ढूंढ कर मार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं। ना महिलाओं को बख्शा जा रहा है, ना बच्चों को। बस गली-गली में एक ही नारा ‘रालिव, चालिव या गालिव’ गूंज रहा है, जिसका अर्थ है ” या तो इस्लाम धर्म अपनाओ, या भाग जाओ या मर जाओ..” पहली सीन के साथ ही निर्देशक स्पष्ट कर देते हैं कि यह फिल्म 1990 की घटना को गहराई से छूने वाली है।
रिपोर्ट्स के आधार पर फिल्म कश्मीरी पंडितों पर हुए तमाम हिंसा और दुरव्यवहार को दर्शाती है। बीके गंजू की चावल की बैरल में हत्या हो या नदीमर्ग नरसंहार हो, जहां 24 कश्मीरी पंडितों को भारतीय सेना की वेश में आए आतंकवादियों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी। ये घटनाएं हम पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) और उनके परिवार की नजरों से देखते हैं।
पुष्कर नाथ पंडित अपने बेटे, बहू और दो पोतों के साथ श्रीनगर में रहते हैं। जब उनके परिवार पर खतरा मंडराता है तो वो अपने चार दोस्तों ब्रह्म दत्त (मिथुन चक्रवर्ती) जो कि आईएएस हैं, डीजीपी हरि नारायण (पुनीत इस्सर), विष्णु राम (अतुल श्रीवास्तव) जो कि मीडिया के लिए काम करते हैं और डॉ महेश कुमार (प्रकाश बेलावाड़ी) से मदद मांगते हैं, लेकिन तत्कालीन राज्य के अपंग प्रशासन के सामने सभी असहाय दिखाई पड़ते हैं।
ये सभी किरदार प्रतीकात्मक हैं, जो उस वक्त मौन रही सरकार को दिखाते हैं। निर्देशक ने फिल्म में कृष्णा की दुविधा के द्वारा आज के युवाओं को इंगित किया है। एक तरफ उसकी प्रोफेसर राधिका मेनन (पल्लवी जोशी) कश्मीर की “आजादी” के नारे लगवाती है, दूसरी तरफ है उसके परिवार और कश्मीरी पंडितों का इतिहास। कृष्णा किस पक्ष की ओर से न्याय की मांग करता है, यही है फिल्म की कहानी।
कश्मीरी पंडित कौन है? और कश्मीरी पंडित क्यों भागे अपना घर-बार छोड़कर?
कश्मीरी पंडित (कश्मीरी ब्राह्मण) कश्मीरी हिंदू हैं और वृहत्तर सारस्वत ब्राह्मण समुदाय का हिस्सा हैं। ये जम्मू और कश्मीर के भारत के केंद्र शासित प्रदेश में एक पहाड़ी क्षेत्र कश्मीर घाटी के पंच गौड़ ब्राह्मण समूह से संबंधित है। कश्मीरी पंडित को न चाहते हुए भी अपना कश्मीर छोड़कर क्यों जाना पड़ा आगे विस्तार से जानेंगे –
The kashmir files movie real story in hindi
दोस्तों ये कहानी शुरु होती है राजनीति से और इस कहानी की शुरुआत होती है फारुक अब्दुल्ला से जिन्होनें साल 1979 में अपने पिता शेख अब्दुल्ला के बाद CM के पद की शपथ ली। इसके बाद आता है साल 1983 जब फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव में उतरे, और चुनाव को जीता भी। साल 1984 के लोकसभा के चुनाव में फारुख अब्दुल्ला और इंदिरा गांधी की कड़वाहट और ज्यादा बढ़ने लगी। इसी कड़वाहट का नतीजा था साल 1984 में कश्मीर का सत्ता परिवर्तन।
दोस्तों फारुख अब्दुल्ला के जीजा गुलाम मोहम्मद शा ने नेशनल कांफ्रेंश के 13 विधायको को और कांग्रेस के 26 विधायकों को जोड़कर फारुख अब्दुल्ला को सत्ता से बाहर कर अपनी सरकार बनाई। इस सरकार का कश्मीर के लोगो ने जमकर विरोध किया। और धरना प्रदर्शन किया गया। सबसे पहले कश्मीरी पंडितो पर हिंसा का मामला सन 1986 में ही आया जब अयोध्या में राम मंदिर का ताला खोला गया। इसके बाद कई कश्मीरी पंड़ितो और मंदिरो पर हमला किया गया। इस दौरान मंदिरों और मस्जिदो पर भड़काऊ पोस्टर भी लगाए जाते थे। जिसकी बजह से सरकारी ऑफ़िस में हिंदू मास्कैजोलीव पर चले गए।
अब घाटी में माहौल और भी खराब हो गया और 7 मार्च 1986 को गुलाब मोहम्मद शॉ की सरकार को हटा दिया गया। और इस तरह आज़ादी के बाद पहली बार घाटी में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। घाटी के सबसे ज्यादा माहौल खराब होने के जिम्मेदार 1987 के विधानसभा चुनाव थे। क्योंकि इससे पहले फारुख अब्दुल्ला ने कांग्रेस से हाथ मिला जिसके बाद फारुखअब्दुला कश्मीर के लोगों के बीच ऐसे नेता बन गए जो कांग्रेस के आगे खुद को समर्पण कर दिया। अब ऐसे में नेशनल कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के गठबंधन के सामने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट राजनीतिक पार्टी बनकर लोगो के सामने आया। जिसने इस गठबंधन की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ा दी। जीतने के बावजूद अलगाव बादियो ने गठबंधन की सरकार पर आरोप लगाना शुरु कर दिया।
धीरे धीरे घाटी में कट्टरबाद फैलना शुरु हो गया, इसके बाद साल 1988 आते आते सिनेमा घर बार ब्यूटीपालर सब कुछ आतंकबादिओ के निशाने पर था। चुनाव की आड़ में अलगाव बादियो ने इस्लाम खतरे में है, इस्लाम खतरे में का नारा लगाने लगे। वही दूसरी तरफ JKLF ने कश्मीर छोड़ो का नारा भी बुलंद किया। और ये वही दौर था जहाँ से शुरु होती है हत्याओं का सिलसिला।
कश्मीरी पंडितो में सबसे पहले किसकी हत्या की गई?
साल 1989 की तारीख 14 सितम्बर इस दिन हत्या हुई भाजपा के अध्यक्ष और वकील पीकालाल टक्लू की। इसके बाद 4 नवम्बर 1989 को JKLF के मकबूल भट्ट को फांसी की सजा देने वाले न्यायाधीस नीलकांत गंजू को भी मौत के घाट उतार दिया गया। इस समय चारों ओर एक ही नारा सुनाई देता था ‘रालिव, गालिव या चालिव’ जिसका मतलव ये था की हमारे साथ मिल जाओ या मरो या फिर भाग जाओ। आलम ये था कि 8 दिसम्बर 1989 को तत्कालीन बी पी सिंह की सरकार में गृहमंत्री और मुख्यमंत्री की बेटी का अपहरण JKLF के आतंकबादिओ ने कर लिया। जिसके कारण सरकार को न चाहते हुए भी JKLF के बीच 5 आतंकवादिओ को छोड़ना पड़ा।
इस दौर में सरकारी नौकरी करने वाले हिन्दू आतंकवाद के निशाने पर थे। हालात इतने खराब थे कि 4 जनवरी 1990 को हिजबुल मुजाबुद्दीन की ओर से उर्दू अखवार जिसका नाम आख्ताव था उसमें एक विज्ञापन प्रिंट की गई। उस विज्ञापन में लिखा गया कश्मीरी पंडित यहाँ से चले जाएं नही तो अंजाम बहुत बुरा होगा। और घाटी में बिगड़ते हुए हालात को देखते हुए 19 जनवरी 1990 को जगमोहन को जम्मू कश्मीर का गवर्नर नियुक्त किया गया।
कश्मीरी पंडित का पलायन कब हुआ?
फारुख अबदुल्ला ने इसके विरोध में अपने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। और इंग्लैंड रवाना हो गए। और जगमोहन की नियुक्ति अलगाव बादिओ के लिए आँख का कांटा बन गई। और इसके बाद कश्मीरी पंडितो पर हमले और ज्यादा हो गए। 19 जनवरी 1990 की रात कश्मीरी पंडितो के लिए क़यामत की रात थी उनके घरों को जलाया जा रहा था, उनकी पत्नियों और बेटियों को अगवा कर रेप कर जिंदा जलाया जा रहा था। और यही बजह थी की 19 जनवरी 1990 को बड़ी संख्या मे कश्मीरी पंडित रातों रात कश्मीर छोड़ने पर मजबूर हो गए। करीब 2.5 लाख कश्मीरी पंडित एक साथ पलायन कर गए थे।
बीसवीं सदी की शुरुआत में लगभग 10 लाख कश्मीरी पंडित थे और आज की तारीख में 9 हजार से ज्यादा नही है। 1941 में कश्मीरी हिंदुओं का आबादी में हिस्सा 15 % था 1991 तक इनके हिस्सेदारी सिर्फ 0.1 % ही रह गया। जब किसी समुदाय की आबादी 10 लाख से घटकर 10000 के अंदर सिमट जाए तो ऐसे में एक ही शब्द बचता है नर संहार। 19 जनवरी 1990 को सिर्फ पलायन की बजह से याद किया जाता है। लेकिन ऐसा नही है कि इसके बाद कश्मीर में किसी पंडित की हत्या नही हुई। 1990 से 1997 के बीच करीब 800 बच्चे मेंटली बीमारी से पीड़ित पाए गए। और महिलाओ के हालात पलायन से पहले और बाद में भी बेहद खराब थे। इन कश्मीरी पंडितो को आज भी न्याय नही मिल सका है।
निष्कर्ष-
तो दोस्तों ये थी The kashmir files movie story in hindi, द कश्मीर फाइल्स स्टोरी इन हिंदी। दोस्तों कश्मीरी पंडितों के साथ हमारे देश में काफी अन्याय हुए हैं, और सरकार अब इन पंडितों को वापस से इनका हक दिलाने की कोशिश करने में लगी हुई है। लेकिन सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद भी इन पंडितो के साथ हुए अन्याय को भुलाया नहीं जा सकता है।
The Kashmir files movie web story देखें
FAQ The kashmir files
Q : कश्मीरी पंडित कौन है?
Ans : कश्मीरी में रहने वाले हिंदुओं को कश्मीरी पंडित कहा जाता था।
Q : कश्मीरी पंडित के साथ क्या हुआ था?
Ans : उनकी हत्या की जा रही थी, तथा बेटियों और पत्नियों का बल्तकार कर मार दिया जा रहा था, जिसके कारण उन्हें कश्मीर से पलायन करना पड़ा था।
Q : द कश्मीर फाइल्स फिल्म कब रिलीज़ हुई है?
Ans : 11 मार्च 2022
Q : कश्मीरी पंडितों का पलायन कब हुआ?
Ans : 19 जनवरी सन 1990 में।
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