दिनांक:- 21/08/2014 Author Rohit Soni
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रात बड़ी दिन छोट का काम यही रोज का
रात बड़ी दिन छोट का,
काम यही रोज का।
आलू वंडा हाथ म्,
नमकीन चाट मसाला साथ म्।
पर्स मोबाईल जेब म्,
कम्प्यटर रखा लैब म्।
रात बड़ी दिन छोट का,
काम अधिक वेतन छोट का।
कॉलेज जाई रोज त,
दिन कटी मौज म्।
लड़की आई कार म्,
लड़का फसा जाल म्।
सर बोले दिल अभी रोक लो,
रात बड़ी दिन छोट का।
दाल रोटी रोज का,
लिस्ट माही नाम दे।
खेल माही भाग ले,
खेल माही जीत के।
मान बचाई कॉलेज के,
जऊन पाई नाई जेब म् ।
रात बङी दिन छोट का,
काम यही रोज का ।।
ठंडी संम्बधी दोहे
दिनांक:- 14/11/2015 Author Rohit Soni
RK रजाई राखिए, बिन रजाई सब सून ।
रजाई बिन न मिले, ठण्डी में सुकून ।।
आग जो कही मिले, बुलाए पास ।
RK कहैं सर्दी में चहियत यही उपाय ।।
काल करै सो आज, आज करै सो अब ।
पल में ठण्डी लग गयी तो, इलाज करेगा कब ।।
रोहित कहै रजाई से बाहर कैसे जाय ।
बाहर जों निकलैय, ठण्डी में ऐसी तैसी होय जाय ।।
नहाने जो मैं चला, नहाय सका न कोय ।
लौट के आपणो रजाई में घुस जोय ।।
सुबह जो नींद खुले दिखे न कोय ।
जिधर भी देखे धुन्धै-धुन्ध होय ।।
सच को ले गये थानेदार
दिनांक:- 09/12/2016 Author Rohit Soni
सच को ले गये थानेदार । झूठै फिरै, बने सरदार ।।
झूठ को सच में बदलै काले कोट ।
देते इंसानियत को गहरे चोट ।।
घोष खाते सरकारी बाबू ।
देखो भ्रष्टाचार हो गया बेकाबू ।।
अब तो होती है, गरीबों की हार ।
धनी गवाह खरीद लेते हरबार ।।
देखो हर, व्यक्ति कहीं खो गया ।
यो इंसानों को क्या हो गया ।।
सच को ले गये थानेदार । झूठै फिरै, बने सरदार ।।
घर का रखवाला ही घर को खाए ।
दूसरों को क्या कहें?
अब तो खुद पे विश्वास किया न जाए ।।
अपनो को नही अपनो की परबाह ।
अपने ही हो गए दूसरो के गबाह ।।
सच को ले गये थानेदार ।
झूठै फिरै, बने सरदार ।।
आओ दोस्तो ! इस जहाँ को फिर से जगाए ।
इंसानियत के चिराग फिर से जगाए ।।
इस धरती से भ्रष्टाचार हम सब मिटाए ।
इस धरती को अब पुनः स्वर्ग बनाए ।।
जहाँ अपनो को होगी अपनो की परवाह ।
अपने ही नहीं दूसरे भी बनेगे अपने गबाह ।।
सच को ले गये थानेदार । झूठै फिरै, बने सरदार ।।
साधन नही है पर साधना है
दिनांक:- 25/08/2018 Author Rohit Soni
साधन नही है, पर साधना है।
नीद लगी है, पर जागना है।
पॉव थके है, पर भागना है।
संघर्ष से नही हारना है
कुछ है नही पर कुछ करना है।
हूँ मैं कमजोर न किसी का सहारा,
चीर सीना मुसीवतों का मंजिल तक
अकेले ही जाना है ।
साधन नही है, पर साधना है ।।
न देख औरो को बढ़ आगे,
न रूक किसी के रोकने से,
भर हौसलो का तूफान सीने में,
बढ़े चल, टूट कर बिखर जाएगी,
सारी मुसीवते मेरी कोशिशों से,
मैं बैठ नही सकता किस्मत के भरोसे से
क्योकि,
साधन नही है, पर साधना है ।
संघर्ष से नही हारना है ।।
ठंड मे बिना पानी के कैसे नहाए | Thand me Bina Pani ke Kaise Nahaye

ठंड मे बिना पानी के कैसे नहाए
मन यही ठंडी में गुनगुनाए
दादा-दादी, मम्मी-पापा, न जाने ठंडी में रोज कैसे नहाए
अंकित तो दस-दस दिन तक ठंडी में न नहाए
देख के सुबह का हाल
मन यही ठंडी में गुनगुनाए
ठंड मे बिना पानी के कैसे नहाए
सूरज दादा भी नरम हैं
चल रही हवाएँ वह भी ठंड हैं
धरती माता ओढ़ कोहरे की चादर
करती सबको तंग हैं
देख मौसम का ये हाल
मन यही ठंडी में गुनगुनाए
ठंड मे बिना पानी के कैसे नहाए
दांत भी किट-किट बोले
हांथ भी कप-कपी से डोले
स्वेटर-जर्सी और टोपी भी पहन लिया
फिर भी सर्दी ने ऐसा प्रहार किया
मन यही ठंडी में गुनगुनाए
ठंड मे बिना पानी के कैसे नहाए
:-रोहित सोनी:-
अभी तो है उनको करके दिखाना
अभी तो है उनको करके दिखाना,
जो खड़े बहानो की नाव पर चाहते यही रुक जाना।
हम तो यूं ही आगे बढ़ेंगे,
पर रोकने वाले कितने आगे रहेंगे,
जो कर लिया दृढ़ निश्चय एक बार,
फिर चाहे रूकावटे आएं हजार
हम रहेंगे हमेशा तैयार।
ये चंद दिनो की मौज-मस्ती
हैं क्या मुझे जकड़ सकती।
इनसे तो कहीं बड़े हैं मेरे लक्ष्य और इरादे,
जो याद मुझे दिलाते जिंदगी में है, कुछ कर जाना।
अभी तो है उनको करके दिखाना,
जो खड़े बहानों की नाव पर चाहते यही रुक जाना।
सुंदर पथ हो या कांटो सी राहें
निकल पड़े जिस राह पे
उन्ही से हैं दिल लगाते।
अब कांटे भी शर्मा गए पत्थर भी घबरा गए।
ये सोच रहे कौन है वो,
जिसके खून में है केवल बढ़ने का जूनून।
देख यह सबका हाल मैं हुआ और जवान
घूम रहें मन में यही ख्याल
अभी तो है उनको करके दिखाना,
जो खड़े बहानो की नाव पर चाहते यही रुक जाना।
Author रोहित सोनी (03-01-2022)