लोकोक्ति किसे कहते हैं? लोकोक्ति की विशेषताएं, 100 लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ, lokoktiyan in Hindi with examples, हिंदी कहावतें और उनका अर्थ, बड़े बुजुर्गों की कहावतें
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लोकोक्ति किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइए
लोकोक्ति का अर्थ है लोक में प्रचलित उक्ति या कथन। लोक + उक्ति = लोकोक्ति, लोगों द्वारा कहा गया कथन है। यह लोकोक्तियां प्रायः नीति, व्यंग, चेतावनी, उपालंभ आदि से संबंधित होती हैं। अपनी बात की पुष्टि के लिए या अपने कथन को अधिक तीव्र, तार्किक, प्रभावोत्पाद, युक्तिसंगत बनाने के लिए लोग लोकोक्ति का सहारा लेते हैं। कभी-कभी बिना असली बात कहे हुए भी लोग लोगों की बोल देते हैं और वास्तविक अर्थ प्रसंग में समझ लिया जाता है। इसमें अनुभवजन्य सत्य निहित रहता है।
लोकोक्ति की विशेषताएं :
लोकोक्तियां मुहावरे की अपेक्षा विस्तृत होती हैं। यह क्रियार्थक नहीं होतीं। यह अविकारी होती हैं। इन्हें लिंग वचन के अनुसार बदलते नहीं हैं। इन्हें वाक्यों में प्रयोग नहीं किया जा सकता। यह वाक्य के रूप में ही अपने आप में पूर्ण होती हैं। लोकोक्तियां लेखकों के लेखन या भाषण कर्ताओं से निसृत होकर प्रचलित होती हैं। लोकोक्ति साहित्य का गौरव है। इसमें गहरी से गहरी बात को कम शब्दों में कह दिया जाता है। इन्हें समझने के लिए इनका सही अर्थ जानना आवश्यक है, तभी इनका प्रयोग सफल होगा।
लोकोक्ति का महत्व :
लोकोक्तियों या कहावतों का प्रयोग करके कथन को अधिक प्रामाणिक, युक्तिसंगत, तार्किक और जोशीला बनाया जा जाता है। कहावतों के कारण कथन में विशेष प्रभाव आ जाता है। कथन को स्पष्ट करने में भी लोकोक्तियाँ बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
लोकोक्ति का इस्तेमाल करते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- लोकोक्ति पढ़ते-पढ़ते ऐसे विस्तृत अनुभव को पकड़ने का प्रयास करना चाहिए जिसका प्रतिनिधि बनकर लोकोक्ति का शब्द और अर्थ प्रयोग में लाया जाए।
- उस अनुभव वाले अर्थ को संक्षिप्त में एक वाक्य में स्पष्ट कर देना चाहिए।
- वर्तमान परिस्थिति में उस अनुभव को घटित करने वाली घटना और लोकोक्ति के अनुभव वाले अर्थ को फिर देख लेना चाहिए कि दोनों समानता रखते हों।
- अब उक्त घटना को एक या दो वाक्यों में लिखकर उसके अंत में समर्थन रूप में लोकोक्ति लिखनी चाहिए।
मुहावरों और लोकोक्तियों में क्या अंतर है उदाहरण सहित बताइए?
- मुहावरा किसी वाक्य के साथ जुड़ कर ही अपना पूरा अर्थ व्यक्त करता है। जबकि लोकोक्ति अपने आप में पूर्ण होती है।
- मुहावरा किसी वाक्य का अंश मात्र होता है जबकि लोकोक्ति स्वतंत्र वाक्यखण्ड होती है।
- मुहावरे के प्रयोग में चमत्कार प्रदर्शन का भाव रहता है। जबकि लोकोक्ति विषय की स्पष्टता एवं सत्यता को प्रकाशित करती है।
100 लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ – lokoktiyan in Hindi
अपना हाथ जगन्नाथ – अपने हाथ से काम करने में ईश्वरीय शक्ति है।
अपने मरे सरग दिखता है – स्वयं कार्य करने से ही काम बनता है।
अपने लड़के को काना कौन कहता है – अपनी वस्तु सभी को सुंदर लगती है।
अपना धाम कोटा तो परखैया क्या करें – जब स्वयं में दोष हो तो दूसरे भी बुरा कहेंगे।
अपनी करनी पार उतरनी – अपने ही परिश्रम से सफलता मिलती है।
अपनी अपनी डफली अपना अपना राग – अपनी ही बातों को महत्ता देना।
अपने ही शालिग्राम डिब्बे में नहीं समाते – जो अपना ही काम पूरी तरह नहीं कर पाता, वह दूसरों की क्या मदद करेगा।
अंधा पीसे कुत्ता खाए – नासमझ के कामों का लाल चतुर्थ आते हैं।
अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत – हानि होने से पहले रक्षा का प्रबंध करना चाहिए।
अंधा क्या चाहे दो आंखें – मनचाही वस्तु देने वाले से और कुछ नहीं चाहिए।
अक्ल बड़ी या भैंस – उम्र के बड़प्पन से बुध की श्रेष्ठा अधिक अच्छी है।
आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास – ऊंचे उद्देश्य की तैयारी करके साधारण काम में जुट जाना।
आम के आम गुठलियों के दाम – किसी वस्तु से दोहरा लाभ होना।
आंख का अंधा गांठ का पूरा – नासमझ धनी पुरुष जो ठगी में पड़कर हानि उठाता है।
आंख के अंधे नाम नयनसुख — ऊचा पत और प्रसिद्धि पाने पर भी इतनी योग्यता ना रखना।
आधी रात खांसी आए, शाम से मुंह फैलाए — काम का समय आने के बहुत पहले से ही चिंता करने लगना।
आधा तेल आधा पानी — ऐसी मिलावट जो अनुपयोगी हो।
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इधर कुआं उधर खाई — दुविधा की स्थिति। दोनों तरफ से हानि की संभावना।
ईश्वर देता है तो छप्पर फाड़ के — अकस्मात अत्यधिक लाभ हो जाना।
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे — अनुचित काम करके भी न दबना।
ऊखल में सिर देकर मूंसलों से क्या डर — एक बार किसी मार्ग पर चल पड़े तो फिर संकटों से घबराना नहीं चाहिए।
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और — कहना कुछ और करना कुछ और।
एकै साधै, सब सधै, सब साधै सब जाय — एक ही काम मन लगा कर करना चाहिए, यदि निश्चय दिख गया तो सब नष्ट हो जाएगा।
अकेला चना भांड़ नहीं छोड़ सकता — अकेला व्यक्ति बड़ी योजना सफल नहीं बना पाता।
एक हाथ से ताली नहीं बजती — लड़ाई या मित्रता अकेले संभव नहीं।
एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है — एक के दुष्कर्म से सहकर्मी बदनाम होते हैं।
ओछे की प्रीत बालू की भीति — तुच्छ व्यक्ति की मित्रता स्थाई नहीं होती।
आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिले ना पूरी पावै — लालची व्यक्ति के हाथ कुछ नहीं आता।
काठ के उल्लू — निकम्मा आदमी, किसी काम का नहीं।
कर नहीं तो डर नहीं — बुरा ना किया तो किसी से डरना कैसा।
कड़वा करेला नीम चढ़ा — दुष्टव्यक्ति को दुष्ट की संगत मिल जाए तो वह और अधिक दुष्ट हो जाता है।
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा — बेमेल वस्तुओं या तथ्यों को सम्मिलित करने का प्रयास करना।
काम परे कछु और है, काम सराय कछु और है — स्वार्थ पूरा होने पर आदमी बदल जाता है।
काजी घर के चूहे सयाने — चतुर लोगों की संगत में छोटे लोग भी चतुराई सीख जाते हैं।
कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर — सभी को सभी से काम पड़ता है।
खोदा पहाड़ निकली चुहिया — बड़े श्रम से थोड़ा लाभ।
खरगोश के सींग — असंभव बात, जो न देखी न सुनी हो।
गुरु गुड़ हो रहे चेला शक्कर हो गए — जिससे कोई गुण सीखा हो, उसकी अपेक्षा अधिक चतुराई दिखाना।
घर का जोगी जोगना, आन गांव का सिद्ध — समीप रहने वाले घोड़ी को लोग महत्व नहीं देते, दूर वाले का सम्मान करते हैं।
गिलोय और नीम चढ़ी — दुर्गुणों में और वृद्धि हो जाना, दो-दो दुर्गुण।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है — अपने घर या मोहल्ले आदि में सब लोग बहादुर बनते हैं।
अपनी अक्ल और पराई दौलत सबको बड़ी मालूम पड़ती है — मनुष्य स्वयं को सबसे बुद्धिमान समझता है और दूसरे की संपत्ति उसे ज्यादा लगती है।
अपने मुंह मियां मिळू — अपने मुंह से अपनी बड़ाई करने वाला व्यक्ति।
आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ — वह विपत्ति या बीमारी जो आजीवन बनी रहे।
आ बैल मुझे मार — जान- बूझकर विपत्ति में पड़ना।
आया है जो जायेगा, राजा रंक फकीर — अमीर-गरीब सभी को मरना है।
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया — भगवान की माया विचित्र है। संसार में कोई सुखी है तो कोई दुःखी, कोई धनी है तो कोई निर्धन।
उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई — जब इज्जत ही नहीं है तो डर किसका?
उसी की जूती उसी का सिर — किसी को उसी की युक्ति (वस्तु) से बेवकूफ बनाना।
ऊंट के मुंह में जीरा — बहुत अधिक आवश्यकता वाले या खाने वाले को बहुत थोड़ी-सी चीज देना।
ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी — जब किसी काम को शक्तिशाली लोग न कर सकें और कोई कमजोर आदमी उसे करना चाहे, तब ऐसा कहते हैं।
एक अंडा वह भी गंदा — एक ही पुत्र, वही भी निकम्मा।
एक और एक ग्यारह होते हैं – मेल में बड़ी शक्ति होती है।
एक ही थैले के चट्टे-बट्टे – एक ही प्रकार के लोग।
ओठों निकली कोठों चढ़ी – जो बात मुंह से निकल जाती है, वह फैल जाती है, गुप्त नहीं रहती।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात – होनहार के लक्षण पहले से ही दिखाई पड़ने लगते हैं।
न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी – न कारण होगा, न कार्य होगा।
छछूंदर के सर पर चमेली का तेल – अयोग्य के पास योग्य वस्तु का होना।
सूखी तलाईया म मेंढक करय टर-टर – खुली आँखों से सपने देखकर खुशी व्यक्त करना।
जिसकी बंदरिया वही नचावे और नचावे तो काटन धावे – जिसका जो काम होता है वही उसे कर सकता है।
जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे – जब किसी के द्वारा पाला हुआ व्यक्ति उसी से गुर्राता है।
जी कहो जी कहलाओ – यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग तुम्हारा भी आदर करेंगे।
जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है – कम बोलने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है।
जान है तो जहान है – यदि जीवन है तो सब कुछ है। इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए।
जैसा मुँह वैसा तमाचा – जैसा आदमी होता है वैसा ही उसके साथ व्यवहार किया जाता है।
जो गुड़ खाय वही कान छिदावे – जो आनंद लेता हो वही परिश्रम भी करे और कष्ट भी उठावे।
जो दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदता है, वही गड्ढ़ा में गिरता है – जो दूसरे लोगों को हानि पहुँचाता है उसकी हानि अपने आप हो जाती है।
जो धावे सो पावे, जो सोवे सो खोवे – जो परिश्रम करता है उसे लाभ होता है, आलसी को केवल हानि ही हानि होती है।
जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी – स्त्री यह देखना चाहती है कि मेरे पति ने कितना रुपया कमाया। माता यह देखती है कि मेरा पुत्र भूखा तो नहीं है।
ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय – जितना ही अधिक ऋण लिया जाएगा उतना ही बोझ बढ़ता जाएगा।
झट मँगनी पट ब्याह – किसी काम के जल्दी से हो जाने पर उक्ति।
झूठ के पांव नहीं होते – झूठा आदमी बहस में नहीं ठहरता, उसे हार माननी होती है।
गधा खेत खाए जुलाहा पीटा जाए – किसी के कर्म की सजा अन्य को मिले
बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा – पीड़ा को सहकर ही समझा जा सकता है।
बाप बड़ा न भइया, सब से बड़ा रूपइया – धन ही सबसे बड़ा होता है।
बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले – छोटे स्तर का काम न कर पाना और बड़े काम करने की कोशिस करना।
सहजय गुड़ पक्कय ता सबै लपक्कय – अगर कोई काम सरल होता, तो सब ही कर लेते।
जैसा घर वैसा आगन – जैसा काम वैसा परिणाम।
जब से करो भइया-भइया तब से जोतिहा चार हरइया – जब तक से किसी के आगे हाथ फैलाएंगे उतने में स्वयं ही कर लेगे।
भूखे पेट भजन नही होय – विना मुनाफा के कोई कार्य नही होता।
जैसी राजा वैसी प्रजा – जैसे मालिक वैसे ही बाकी सब लोग।
अधजल गगरी छलकत जाय, भरी गगरिया चुप्पै जाय – अधूरे ज्ञान से लोग बहुत बाते करते है। जबकि परम ज्ञानी शांत रहते है।
चोर-चोर मौसेरे भाई – एक ही क्षेत्र के लोग अपनो का ही साथ देते है।
खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचय – गुस्साया हुआ व्यक्ति किसी को भी डाटे।
सूम के धन शैतान खाए – फ्री में मिला हुआ धन या संपत्ति व्यर्थ ही जाता है।
बाप के आगे पूत सयाना, अइसे-अइसे घर नसाना – जब बड़े लोगो के सामने बच्चे बोलने लगते हैं तो घर बिखर जाता है।
एक अनार सौ बीमार – एक वस्तु के बहुत सारे ग्राहक होना।
एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा – एक दोष तो था ही दूसरा और लग गया।
एक मयान में दो तलवार नहीं रह सकती – एक वस्तु को पाने वाले नहीं हो सकते।
कंगाली में आटा गीला – मुसीबत में और मुसीबत आना।
काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती – चालाकी से एक बार ही काम निकलता है।
कोयले की दलाली में मुंह काला – बुरे के साथ रहने से बुराई बुराई ही मिलती है।
कौवा चला हंस की चाल अपनी भी भूल गया – दूसरों की नकल करने के प्रयास में अपनी विशेषता भी गवा देना।
कहाँ राजा भोज कहा गंगू तेली – दो व्यक्तियों की स्थिति में अन्तर होना।
अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी – जहां दो व्यक्ति हों और दोनों ही एक समान मूर्ख, दुष्ट या अवगुणी हों वहां ऐसा कहते हैं।
अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे – मूर्खों को सदुपदेश देना या उनके लिए शुभ कार्य करना व्यर्थ है।
अंत भला तो सब भला – परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ माना जाता है।
अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं – पहले स्वार्थ पूरा करके तब परमार्थ या परोपकार किया जाता है।
अभी दिल्ली दूर है – अभी काम पूरा होने में देर है।
आंखों के आगे पलकों की बुराई – किसी के भाई बन्धुओं या इष्ट-मित्रों के सामने उसकी बुराई करना।
आंसू एक नहीं और कलेजा टूक-टूक – दिखावटी रोना।
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FAQ
10 लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ
1) अकेला चना भांड़ नहीं छोड़ सकता – अकेला व्यक्ति बड़ी योजना सफल नहीं बना पाता।
2) नाच न जाने आगन टेढ़ा – स्वयं में कमी हो और दोष दूसरो को देना।
3) अंधों में काना राजा – मूर्खों में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति
4) अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – अकेला आदमी लाचार होता है
5) अधजल गगरी छलकत जाय – डींग हाँकना
6) आँख का अँधा नाम नयनसुख – गुण के विरुद्ध नाम होना
7) एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा – एक दोष तो था ही दूसरा और लग गया।
8) ऊंट के मुंह में जीरा — बहुत अधिक आवश्यकता वाले या खाने वाले को बहुत थोड़ी-सी चीज देना।
9) अंधा पीसे कुत्ता खाए – नासमझ के कामों का लाल चतुर्थ आते हैं।
10) खोदा पहाड़ निकली चुहिया — बड़े श्रम से थोड़ा लाभ।
अंधा क्या चाहे दो आँखें का अर्थ?
जरूरी वस्तु अगर आसानी से मिल जाए तो अच्छा हो।
आ बैल मुझे मार का मतलब क्या होता है?
जानबूझकर मुसीबत में पड़ना।