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संपूर्ण आरती संग्रह बुक pdf हिंदी में | Navratri Aarti Sangrah Book pdf

यहाँ पर हमने संपूर्ण आरती संग्रह बुक pdf हिंदी में (Navratri Aarti Sangrah Book pdf) शेयर किया है। इस आरती संग्रह बुक की pdf में आपको सभी देवी-देवताओ की आरती रंगीन चित्र सहित मिलेगी। इसके साथ ही आप क्लिक करके आसानी से किसी भी आरती तक पहुंच सकते हैं।

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संपूर्ण आरती संग्रह बुक pdf हिंदी में (Navratri Aarti Sangrah Book pdf)

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संपूर्ण आरती संग्रह बुक pdf हिंदी में | Navratri Aarti Sangrah Book pdf
संपूर्ण आरती संग्रह बुक pdf हिंदी में | Navratri Aarti Sangrah Book pdf

इस आरती की Pdf बुक में निम्नलिखित आरती और मंत्र सामिल है-

आरती क्या है?आरती श्री रामचन्द्र जी की
आरती श्री गणेश जी कीश्री राम स्तुति
आरती श्री दुर्गा जी कीआरती श्री रामायण जी की
आरती श्री अम्बे जी कीआरती श्री संतोषी माता जी की
आरती श्री जगदीश हरे जी कीआरती श्री शिव जी की
आरती श्री हनुमान जी कीआरती श्री शनि जी की
आरती श्री त्रिगुण जी कीआरती श्री साईबाबा जी की
आरती श्री लक्ष्मी जी कीआरती श्री तुलसी माता जी की
आरती श्री सरस्वती जी कीआरती श्री भैरव जी की
आरती श्री कुंजबिहारी जी कीगायत्री महामंत्र
आरती श्री गायत्री जी कीमहामृत्युन्जय मंत्र
आरती श्री सत्यनारायण जी कीशिव तांडव स्तोत्रम् – मंत्र
आरती बिषय सूची

आरती क्या है और कैसे करनी चाहिए ?

आरती को ‘आरात्रिक’ अथवा ‘आरार्तिक’ और ‘नीराजन’ भी कहते हैं। पूजा के अन्त में आरती की जाती है। पूजन में अज्ञानतावश यदि कोई कमी रह जाए, तो आरती से उसकी पूर्ति होती है। स्कन्दपुराण में भी वर्णन आया है-

अर्थात, मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से पूजन में पूर्णता आ जाती है। साधारणतः पाँच बत्तियों अथवा कपूर जलाकर, शंख घन्टा आदि बाजे बजाते हुए आरती करनी चाहिए। आरती करते समय सर्वप्रथम भगवान् की प्रतिमा के चरणों में उसे पांच बार घुमाएं व दो बार नाभि देश में, दो बार मुखमण्डल पर और सात बार समस्त अंगो पर घुमाएं। जिसका आशय यही है कि भगवान की प्रतिमा सम्पूर्ण रूप से प्रकाशित हो जाये तथा उपासक उनका भली भाँति दर्शन कर सकें। यथार्थ में आरती, पूजन के अन्त में इष्टदेवता की प्रसन्नता व उनकी बलैया लेने के लिए की जाती है।

आरती श्री गणेश जी की Lyrics

आरती श्री गणेश जी की Lyrics
आरती श्री गणेश जी की Lyrics

सदा भवानी दाहिनी गौरी पुत्र गणेश।
पांच देव रक्षा करें ब्रह्मा विष्णु महेश।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करे सेवा । । जय० ।।
एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी
मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी ।।जय० ।।
अन्धन को आंख देत कोढ़िन को काया
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ।।जय० ।।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा
सूरश्याम शरण आये सुफल कीजे सेवा ॥ जय० ।।
दीनन की लाज राखो शम्भु-सुत वारी
कामना को पूरा करो जग बलिहारी ।।जय०।।

गजाननं भूतगणादिसेवितं
कपित्थजम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वरपाद पंकजम् ॥

माँ दुर्गा जी की आरती Lyrics

माँ दुर्गा जी की आरती Lyrics
माँ दुर्गा जी की आरती Lyrics

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली ।
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ।।
तेरे भक्त जनों पे माता, भीड़ पड़ी है भारी ।
दानव दल पर टूट पड़ो माँ, करके सिंह सवारी ।।
सौ-सौ सिंहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली ।
दुष्टों को तू ही ललकारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ।।
माँ बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता ।
पूत कपूत सूने हैं पर, माता ना सुनी कुमाता ।।
सब पर करुणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली ।
दुखियों के दुखड़े निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ।।
नहीं मांगते धन और दौलत, न चाँदी न सोना ।
हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना ।।
सब की बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली ।
सतियों के सत को संवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ।।
चरण शरण में खड़े तुम्हारी, लो पूजा की थाली ।
वरद रस्त सर पर रख दो, माँ संकट हरने वाली ।।
माँ भर दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओं वाली,
भक्तों के कारज तू ही सारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ।।

माँ अम्बे जी की आरती Lyrics

माँ अम्बे जी की आरती Lyrics
माँ अम्बे जी की आरती Lyrics

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ।।
मांग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नयना, चन्द्र वदन नीको ।।
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै ।
रक्त पुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै ।।
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर नर मुनि जन सेवत, तिनके दुख हारी ।।
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति ।।
शुम्भ-निशुम्भ विदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्रविलोचन नयना, निशिदिन मदमाती ।।
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ।।
ब्रह्माणी रुद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ।।
चौसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरू ।
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरु ।।
ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ।।
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ।।
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ।।
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ।।

श्री जगदीश हरे जी की आरती Lyrics

श्री जगदीश हरे जी की आरती Lyrics
श्री जगदीश हरे जी की आरती Lyrics

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जै जगदीश हरे,
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे ।ॐ।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनशे मन का ।प्रभु।
सुख-सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ।ॐ।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी ।प्रभु।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी ।ॐ।
तुम हो पूर्ण परमात्मा, तुम अर्न्तयामी ।प्रभु।
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ।ॐ।
तुम करुणा के सागर तुम पालन कर्ता ।प्रभु।
मैं मूर्ख खल कामी, कृपा करो भर्ता ।ॐ।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।प्रभु।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ।ॐ।
दीनबन्धु दुःख हरता, तुम ठाकुर मेरे ।प्रभु।
अपने हाथ उठाओ, द्वार मैं पड़ा तेरे ।ॐ।
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा ।प्रभु।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ।ॐ।
श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे ।प्रभु।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपत्ति पावे  ।ॐ।

श्री हनुमान जी की आरती Lyrics

श्री हनुमान जी की आरती Lyrics
श्री हनुमान जी की आरती Lyrics

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
जाके बल से गिरिवर काँपे रोग दोष जाके निकट न झाँके ।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई। सन्तन के प्रभु सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाये। लंका जारि सीय सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई जात पवनसुत बार न लाई ।।
लंका जारि असुर संहारे। सीयारामजी के काज संवारे ।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे लाय संजीवन प्रान उबारे ।।
पैठि पताल तोरि जम-कारे अहिरावन की भुजा उखारे ।।
बायें भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे ।।
सुर नर मुनि आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारे ।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई ।।
जो हनुमान जी की आरती गावे बसि बैकुण्ठ परम पद पावे ।।
लंक विध्वंस कीन्ह रघुराई
, तुलसीदास प्रभु कीरति गाई ।।

श्री त्रिगुण जी की आरती Lyrics

श्री त्रिगुण जी की आरती Lyrics
श्री त्रिगुण जी की आरती Lyrics

जय शिव ओंकारा हर शिव ओंकारा,.  
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।  
एकानन चतुरानन पंचानन राजे,.
 हंसासन वृषवाहन साजे ।
दो भुज चार चर्तुभुज दश भुज ते सोहे,.
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ।
गरुड़ासन अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी,.
त्रिपुरारि कंसारी करमाला धारी ।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे,.
सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिक संगे ।
कर मध्ये कमण्डलु चक्र त्रिशूल धर्ता..
जगकरता जगहरता जगपालन करता ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका,
प्रणवाक्षर के मध्ये यह तीनो एका ।
 त्रिगुण शिव की आरती जो कोई नर गावे,.
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ।

श्री लक्ष्मी जी की आरती Lyrics

श्री लक्ष्मी जी की आरती Lyrics
श्री लक्ष्मी जी की आरती Lyrics

ओ३म् जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत हर विष्णु विधाता ।।ओ३म्।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तू ही जग माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता ।।ओ३म्।।
दुर्गा रूप निरंजन, सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यवात ऋद्धि-सिद्धि पाता ।।ओ३म्।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभ दाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ।।ओ३म्।।
 जिस घर में तुम रहती, तहँ सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता ।।ओ३म्।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वरत न हो पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ।।ओ३म्।।
शुभ-गुण-मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रतन चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता ।।ओ३म्।।
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ।।ओ३म्।।

श्री सरस्वती जी की आरती Lyrics

श्री सरस्वती जी की आरती Lyrics
श्री सरस्वती जी की आरती Lyrics

आरती कीजे सरस्वती जी की,
जननि विद्या बुद्धि भक्ति की ।टेक।
जाकी कृपा कुमति मिट जाए,
सुमिरन करत सुमति गति आये,
शुक सनकादिक जासु गुण गाये,
वाणि रूप अनादि शक्ति की ।। आरती ।।
नाम जपत भ्रम छुटें हिय के,
दिव्य दृष्टि शिशु खुलें हिय के ।
मिलहि दर्श पावन सिय पिय के,
उड़ाई सुरभि युग-युग कीर्ति की ।।आरती।।
रचित जासु बल वेद पुराणा,
जेते ग्रन्थ रचित जगनाना ।
तालु छन्द स्वर मिश्रित गाना,
जो आधार कवि यति सति की ।। आरती ।।
सरस्वती की वीणा वाणी कला जननि की ।

श्री कुंजबिहारी की आरती Lyrics

श्री कुंजबिहारी की आरती Lyrics
श्री कुंजबिहारी की आरती Lyrics

आरती कुंजबिहारी। श्रीगिरधर कृष्णमुरारी की॥ (टेक)
गले में बैजंतीमाला, बजावै मुरलि मधुर वाला।
श्रवन में कुण्डल झलकाला, नंद के आनन्द नन्दलाला
॥श्रीगिरधर कृष्णमुरारी की॥

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली,
लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर-सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चन्द्र सी झलक, ललित छवि स्यामा प्यारी की
॥श्रीगिरधर कृष्णमुरारी की॥

नकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसनकों तरसै,
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिनी संग, अतुल रति गोपकुमारीकी
॥श्रीगिरधर कृष्णमुरारी की॥

जहाँ ते प्रगट भई गंगा, सकल मल-हारिणि श्रीगंगा,
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी सिव सीस, जटाके बीच,
हरै अघ कीच, चरन छबि श्री बनवारी की
॥श्रीगिरधर कृष्णमुरारी की॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही बृन्दावन बेनू,
चहूँ दिसि गोपि ग्वाल धेनू, हँसत मृदु मंद, चाँदनी चंद,
कटत भव-फंद, टेर सुनु दीन दुखारी की
॥श्रीगिरधर कृष्णमुरारी की॥

श्री गायत्री जी की आरती Lyrics

श्री गायत्री जी की आरती Lyrics
श्री गायत्री जी की आरती Lyrics

आरती श्री गायत्री जी की ॥टेक॥
ज्ञान दीप और श्रद्धा की बाती,
सो भक्ति ही पूर्ति करै जहं घी की ।।आरती०॥
मानव की शुचि थाल के ऊपर,
देवी की जोति जगे जहं नीकी ।।आरती०।।
शुद्ध मनोरथ के जहां करें पूरी जाके घण्टा बाजे,
आसहु हिय की ।।आरती०।।
समक्ष हमें तिहुं लोक की,
गद्दी मिले तबहूं लगे फीकी ।।आरती०॥
आरती प्रेम सों नेम सो जो करि,
ध्यावहि मूरति ब्रह्म लली की ।।आरती०॥ 
संकट आवै न पास कबौ तिन्हें,
सम्पदा और सुख की बन लीकी ।।आरती०।।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम्
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्

श्री सत्यनारायण जी की आरती Lyrics

श्री सत्यनारायण जी की आरती Lyrics
श्री सत्यनारायण जी की आरती Lyrics

जय श्री लक्ष्मीरमणा, जय श्री लक्ष्मीरमणा।
सत्यनारायण स्वामी, जन-पातक-हरणा ।।जय।।
रत्न जटित सिंहासन, अद्भुत छवि राजै।
नारद करत निराजन, घण्टा ध्वनि बाजै ।।जय।।
प्रकट भये कलिकारण, द्विज को दर्श दियो।
बूढ़ों ब्राह्मण बनके, कंचन महल कियो ।।जय।।
दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा, जिनकी विपत्ति हरी ।।जय।।
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं।
सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर अस्तुति कीन्हीं ।। जय ।।
भाव-भक्ति के कारण, छिन छिन रूप धरयो
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो ।।जय।।
ग्वाल-बाल संग राजा, वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीन्हों, दीनदयालु हरी ।।जय।।
चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा।
धूप दीप तुलसी से राजी सत्यदेवा ।।जय।।
श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्दस्वामी मनवांछितफल पावे ।।जय।।

श्री रामचन्द्र जी की आरती Lyrics

श्री रामचन्द्र जी की आरती Lyrics
श्री रामचन्द्र जी की आरती Lyrics

आरती कीजै श्री रघुबर की । सतचित आनंदशिव सुन्दर की ।। टेक।।
दशरथ-तनय कौसिला-नन्दन, सुर-मुनि-रक्षक दैत्य-निकन्दन ।
अनुगत भक्त भक्त-उर-चन्दन, मर्यादा पुरुषोत्तम वरकी ।।
निर्गुन-सगुन, अरूप-रूपनिधि, सकललोक- वन्दित विभिन्न विधि।

हरण शोक-भय, दायक सब सिधि, मायारहित दिव्य नर-वरकी ।।
जानकिपति सुराधिपति जगपति, अखिल लोक पालक त्रिलोक गति ।
विश्ववन्द्य अनवद्य अमित-मति, एकमात्र गति सचराचर की ।।
शरणागत-वत्सल व्रतधारी, भक्त कल्पतरु वर असुरारी ।
नाम लेत जग पावनकारी, वानर-सखा दीन-दुख-हरकी ।।

श्री राम स्तुति Lyrics

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भव भय दारुणम् ।
नवकंज लोचन, कंज-मुख कर कंज पद कंजारुणम् ।।
कन्दर्प अगणित अमित छवि, नवनीलनीरद- सुन्दरम् ।
पटपीत मानहु तड़ित रुचि सुचि नौमी जनक सुता-वरम् ।।
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकन्दनम् ।
रघुनंद आनंदकंद कौशलचन्द्र दशरथ नन्दनम् ।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदार अंग विभूषणम् ।
आजानुभुज शर-चाप-धर संग्राम-जित- खर-दूषणम् ।।
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम् ।
मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खल-दल-गंजनम् ।।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ।।
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरर्षी अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली ।।
जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ।।

आरती श्री रामायण जी की Lyrics

आरती श्री रामायण जी की,
कीरति कलित ललित सिय पी की ।।टेक।।
गावत ब्रह्मदिक मुनि नारद,
बाल्मीकि विज्ञान विशारद सुक सनकादि शेष अरु शारद।
बरनि पवन सुत कीरति नीकी ||१||
गावत वेद पुरान अष्टदस,
छओ शास्त्र सब ग्रन्थन को रस।
मुनि जन धन संतन को सरबस,
सार अंस सम्मत सब ही की ||२||
गावत संतत संभु भवानी,
अरु घट सम्भव मुनि विग्यानी।
व्यास आदि कवि बर्ज बखानी,
कागभुसुण्डि गरुड़ के ही की ||३||
कलिमल हरनि विषय रस फीकी,
सुभग, सिंगार मुक्ति जुबती की।
दलन रोग भव भूरि अमी की,
तात मात सब विधि तुलसी की ||४||

आरती श्री संतोषी माता जी की Lyrics

आरती श्री संतोषी माता जी की Lyrics
आरती श्री संतोषी माता जी की Lyrics

जय संतोषी माता जय संतोषी माता,
अपने सेवक जन की सुख संपत्ति दाता ।जय।।
सुन्दर चीर सुनहरी माँ धारण कीन्हो,
हीरा पन्ना दमके तन श्रंगार लीन्हो ।जय।।
गेरू लाल छटा छवि बदन कमल सोहे,
मन्द हँसत करुणामयी त्रिभुवन मन मोहे ।।जय।।
स्वर्ण सिंहासन बैठी चंबर दुरे प्यारे,
धूप दीप नैवेद्य मधुमेवा भोग धरे न्यारे ।।जय।।
गुड़ अरु चना परमप्रिय तामें संतोष कियो,
संतोषी कहलाई भक्तजन वैभव दियो ।।जय।।
शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही,
भक्त मण्डली छाई कथा सुनत जोही ।।जय।।
मन्दिर जगमग ज्योति मंगल ध्वनि छाई,
विनय करें हम बालक चरनन सिर नाई ।।जय।।
भक्ति भाव मय पूजा अंगीकृत कीजे,
जो मन बसे हमारे इच्छाफल दीजे ।।जय।।
दुःखी दरिद्री रोगी संकट मुक्त किये,
बहु धन-धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दिये ।।जय।।
ध्यान धरो जाने तेरो मनवांछित फल पायो,
पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो ।जय।।
शरण गये की लज्जा रखियो जगदम्बे,
संकट तू ही निवारे दयामयी माँ अम्बे  ।।जय।।
संतोषी माँ की आरती जो कोई जन गावे,
ऋिद्धि-सिद्धि सुख संपत्ति जी भरके पावे ।। जय ।।

श्री शिव जी की आरती Lyrics

श्री शिव जी की आरती Lyrics
श्री शिव जी की आरती Lyrics

शीश गंग अर्धंग पार्वती सदा विराजत कलासी।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुर सुखरासी।।
शीतल मन्द सुगन्ध पवन यह बैठे हैं शिव अविनाशी।
करत गान गन्धर्व सप्त स्वर राग रागिनी मधुरासी।।
यक्ष-रक्ष-भैरव जहँ डोलत बोलत हैं वन के वासी।
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत हैं गुंजा सी।।
कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु लाग रहे हैं लक्षासी।
कामधेनु कोटिन जहँ डोलत करत दुग्ध की वर्षा सी।।
सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्त सम हिमराशी।
नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित सेवत सदा प्रकृति दासी।।
ऋषि-मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी।
ब्रह्मा-विष्णु निहारत निसिदिन कछु शिव हमकूँ फरमासी।।
ऋद्धि सिद्धि के दाता शंकर नित सत् चित् आनँदराशी।
जिनके सुमिरत ही कट जाती कठिन काल-यम की फाँसी।

त्रिशूलधरजी का नाम निरंतर प्रेम सहित जो नर गासी।
दूर होय विपदा उस नर की जन्म-जन्म शिवपद पासी।।
कैलासी काशी के वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो।
सेवक जान सदा चरनन को अपनो जान कृपा कीजो।।
तुम तो प्रभु जी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो।
सब अपराध क्षमाकर शंकर किंकर की विनती सुनियो।।
शीश गंग अर्धंग पार्वती, सदा विराजत कैलासी।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुर सुखरासी॥

श्री शनि जी की आरती Lyrics

श्री शनि जी की आरती Lyrics
श्री शनि जी की आरती Lyrics

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी।। जय जय…
श्याम अंग वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी।। जय जय …
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लीलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ।। जय जय …
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ।। जय जय ..
 देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी ।
विश्नाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ।। जय जय

श्री साईबाबा जी की आरती Lyrics

श्री साईबाबा जी की आरती Lyrics
श्री साईबाबा जी की आरती Lyrics

ॐ जय साईं हरे, बाबा शिरडी साईं हरे।
भक्तजनों के कारण, उनके कष्ट निवारण॥
शिरडी में अवतरे, ॐ जय साईं हरे॥ ॐ जय…॥
दुखियन के सब कष्टन काजे, शिरडी में प्रभु आप विराजे।
फूलों की गल माला राजे, कफनी, शैला सुन्दर साजे॥
कारज सब के करें, ॐ जय साईं हरे ॥ ॐ जय…॥
काकड़ आरत भक्तन गावें, गुरु शयन को चावड़ी जावें।
सब रोगों को उदी भगावे, गुरु फकीरा हमको भावे॥
भक्तन भक्ति करें, ॐ जय साईं हरे ॥ ॐ जय…॥
हिन्दु मुस्लिम सिक्ख इसाईं, बौद्ध जैन सब भाई भाई।
रक्षा करते बाबा साईं, शरण गहे जब द्वारिकामाई॥
अविरल धूनि जरे, ॐ जय साईं हरे ॥ ॐ जय…॥
भक्तों में प्रिय शामा भावे, हेमडजी से चरित लिखावे।
गुरुवार की संध्या आवे, शिव, साईं के दोहे गावे॥
अंखियन प्रेम झरे, ॐ जय साईं हरे ॥ ॐ जय…॥

श्री सद्गुरु साईंनाथ महाराज की जय॥

श्री तुलसी माता जी की आरती Lyrics

श्री तुलसी माता जी की आरती Lyrics
श्री तुलसी माता जी की आरती Lyrics

जय तुलसी माता, जय तुलसी माता।
सब जग की सुखदाता वर दाता ।।जय….
सब योगों के ऊपर सब रोगों के ऊपर।
रज से रक्षा करके, भव त्राता ।।जय…
बहुपुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली है ग्राम्या।
विष्णुप्रिय जो तुमको सेवे सोनर तर जाता ।। जय…
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित।
पतितजनों की तारिणी तुम हो विख्याता ।। जय…
लेकर जन्मविजन में आई दिव्य भवन में।
मानव लोक तुम्हीं से सुख सम्पत्ति पाता ।। जय…
हरि को तुम अति प्यारी श्यामवर्ण सुकुमारी।
प्रेम अजब है उनका तुमसे कैसा नाता ।।जय…

श्री भैरव जी की आरती Lyrics

श्री भैरव जी की आरती Lyrics
श्री भैरव जी की आरती Lyrics

जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।
जय काली और गौर देवी कृत सेवा ॥जय भैरव देवा…॥
तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक ।
भक्तो के सुख कारक भीषण वपु धारक ॥ जय भैरव देवा…॥
वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ॥ जय भैरव देवा…॥
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे ॥ जय भैरव देवा…॥
तेल चटकी दधि मिश्रित भाषावाली तेरी ।
कृपा कीजिये भैरव, करिए नहीं देरी ॥ जय भैरव देवा…॥
पाँव घुँघरू बाजत अरु डमरू दम्कावत ।
बटुकनाथ बन बालक जल मन हरषावत ॥ जय भैरव देवा…॥
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहे धरनी धर नर मनवांछित फल पावे ॥ जय भैरव देवा…॥

गायत्री महामन्त्र Lyrics

ओ३म् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो
देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयातः

शब्दार्थः

ओ३म् – सर्व रक्षक परमात्मा
भूः – प्राणों से प्यारा
भुवः –  दुख विनाशक
स्वः – सुखस्वरूप है
तत् –  उस
सवितुः – उत्पादक, प्रकाशक, प्ररेक
देवस्य – देव के
वरेण्यं – वरने योग्य
भर्गोः – शुद्ध विज्ञान स्वरूप का
धीमहि – हम ध्यान करें
धियो – बुद्धियों को
यो नः – जो हमारी
प्रचोदयात् – शुभ कार्यों में प्रेरित करें ।

भावार्थ :- उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुख स्वरूप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।

महामृत्युन्जय मंत्र Lyrics

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारूकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।।

शब्दार्थ: हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके

तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं। उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बन्धनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जावे जिस प्रकार एक ककड़ी बेल में पक जाने के बाद उस बेल रूपी संसार के बन्धन से मुक्त हो जाती है उसी प्रकार हम भी इस संसार रूपी बेल में पक जाने के जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदैव के लिए मुक्त हो जाएँ और आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्याग कर आप में लीन हो जायें।

मन्त्र लाभः

  • यह मंत्र जीवन प्रदान करता है।(अकाल मृत्यु, दुर्घटना इत्यादि)
  • यह मंत्र सर्प एवं बिच्छु के काटने पर भी अपना पूरा प्रभाव रखता है।
  • इस मंत्र का महत्वपूर्ण लाभ है कठिन एवं असाध्य रोगों पर विजय प्राप्त करना।
  • यह मंत्र हर बीमारी को भगाने का बड़ा शस्त्र है।

शिव तांडव स्तोत्रम् – मंत्र Lyrics

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

इति श्रीरावण कृतम्
शिव ताण्डव स्तोत्रम्स म्पूर्णम्

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